Karnataka Job Reservation Bill कर्नाटक सरकार ने हाल ही में एक विधेयक पारित किया। जिसके कारण सरकार को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
कर्नाटक सरकार ने निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिए 70% नौकरी आरक्षण का प्रस्ताव रखा, लेकिन इसे बाद में स्थगित कर दिया गया। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बताया कि यह बिल प्रशासनिक पदों के लिए 50% और गैर-प्रशासनिक पदों के लिए 75% कोटा निर्धारित करता है। लेकिन इस प्रस्ताव की आलोचना हुई, खासकर उद्योग के नेताओं से, जिन्होंने कहा कि इससे आईटी क्षेत्र का विकास रुक जाएगा।
इस विवाद के बाद, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि बिल अभी भी तैयारी के चरण में है और अगली कैबिनेट बैठक में इस पर और चर्चा होगी।
सिद्धारमैया ने क्यों लिया ऐसा फैसला? क्या है इसके पीछे का कारण?
यह निर्णय स्थानीय संरक्षणवाद की बढ़ती मांग के कारण लिया गया है। कर्नाटक में पिछले कुछ वर्षों में स्थानीय भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं। कन्नड़ समर्थक समूहों ने अंग्रेजी साइनबोर्डों के खिलाफ भी प्रदर्शन किए हैं। इसके चलते सरकार ने कन्नड़ भाषा को प्राथमिकता देने के लिए नए नियम बनाए हैं।
कर्नाटक में कन्नड़ लोगों के लिए नौकरी आरक्षण का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसमें स्थानीय संस्कृति और भाषा के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है। इन घटनाओं के पीछे स्थानीय लोगों की नौकरियों की सुरक्षा और संस्कृति को बचाने की भावना है।
हालांकि, कर्नाटक पहला राज्य नहीं है जो इस तरह का कोटा प्रस्तावित कर रहा है। आंध्र प्रदेश, हरियाणा और झारखंड ने भी इसी तरह के विधेयक पारित किए हैं, लेकिन बिना भाषा प्रवीणता की आवश्यकता के। ये राज्य भी कानूनी मुश्किलों में पड़ चुके हैं।
आप इस विवादास्पद नौकरी आरक्षण बिल पर क्या सोचते हैं? कमेंट में जरुर बताइयेगा।
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